यश्वी सिंह
जब हम दक्षिण भारतीय व्यंजन की बात करते हैं तो जेहन से सबसे पहले नाम आता है डोसा और इडली का। फ़िलहाल ये दोनों व्यंजन दक्षिण राज्यों की सीमा पार कर पूरे देश में अपनी जगह बना लिए हैं। डोसा तो नहीं लेकिन इडली तो पूरे भारत में घर-घर में बनाई जाती है। इडली उन कुछ चुनिंदा व्यंजनों में से है जो कालातीत है और पूरे देश में पॉपुलर है। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि जिस इडली को हम दक्षिण भारतीय व्यंजन की श्रेणी में रखते हैं उस व्यंजन की उत्पत्ति हमारे देश यानी भारत में नहीं हुई थी।
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इडली की उत्पत्ति को लेकर कई तरह के दावे किये जाते हैं। खाद्य इतिहासकारों के अपने-अपने मत हैं। खाद्य इतिहासकार ए.के. अच्चया की माने तो इंडोनेशिया से इडली भारत में आई थी। दरअसल इंडोनेशिया में एक व्यंजन बनती है केडली। ये इडली से काफी मिलती है। इसलिए अच्चया का अनुमान है कि इडली इंडोनेशिया से आयी और वहां के शाही परिवारों के भारतीय ख़ानसामा इस व्यंजन की विधि अपने साथ भारत लाए हों। इडली का भारत में आने का समय 800 -1200 CE के बीच का माना जाता है। उस समय में इंडोनेशिया के हिस्से में हिंदू शासकों का राज था। इसलिए इस तथ्य को बल मिलता हैं।
खाद्य इतिहासकार ए.के. अच्चया भी यही मानते हैं। वो कहते हैं कि तो इडली के भारत में आने का समय 800 -1200 CE के बीच में ही रहा होगा। क्योंकि सन 920 में कन्नड़ साहित्यकार शिवकोटी आचार्य के लिखे पुस्तक “वड्डाराधने” में इडली का इड्डलागे नाम से उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार सन 1130 में राजा सोमेश्वरा-तृतीय के लिखे संस्कृत मनसोल्लास में भी इड्डरिका के नाम के इस व्यंजन का उल्लेख मिलता है।
लेकिन साथ में अच्चया ये भी कहते हैं कि इन साहित्यिक रचनाओं में कहीं भी आधुनिक समय में जिस तरह इडली बनती है उसका जिक्र नहीं है। वर्तमान में इडली चावल के आटे और उड़द की दाल से बनाई जाती है। दोनों को मिलाकर सात से आठ घंटों के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि इसमें खमीर पैदा हो जाये। जब इसमें खमीर उठ जाती है तब इसे किसी बंद बर्तन में रखकर भाप पर पकाया जाता है। उस टाइम में उड़द दाल को पीस कर उसमे छाछ मिलाकर बनाया जाता था।
वहीं फ़ूड हिस्टोरियन यानी खाद्य इतिहासकार लिज़ी कॉलिंघम, ए.के. अच्चया के दावों से इत्तेफाक नहीं रखती। उनका मत है कि इडली की उत्पत्ति इंडोनेशिया में नहीं बल्कि कहीं और हुई थी। कॉलिंघम ये दावा काहिरा स्थित अल-अज़हर लाइब्रेरी में उपलब्ध किताबों के आधार पर करती हैं। उनका कहना है कि अरब व्यापारी अपने साथ इडली लेकर भारत आये थे। वो शादी करके दक्षिणी पट्टी में बस गए थे और इस प्रकार वहां इडली आई।
हैज़र चार्ल्स बी. द्वारा लिखी और कॉलिंघम द्वारा सम्पादित किताब सीड टू सिवलीज़ेशन (हारवर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) के अनुसार, इडली का आविष्कार दक्षिणी पट्टी में बसे अरब के लोगों द्वारा हुआ। जो लोग दक्षिणी पट्टी में बसे थे ,वो अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देते थे। इस्लामिक कानून के तहत वे सिर्फ हलाल खाना ही खाते थे। खाना हलाल है या नहीं, इस भ्रम को दूर करने के लिये वो लोग चावल के लड्डू बनाने शुरू किये जिसे वो नारियल के शोरबे के साथ खाते थे। चावल के बनने वाले लड्डुओं का आकर गोल ना होकर कुछ चपटे चपटे होते थे।लेकिन इन लड्डुओं का स्वाद आज की इडली से बिलकुल अलग होता था। फ़िलहाल ये तो तय है कि चावल के आटे और उड़द दाल को मिलाकार खमीर उठने के बाद बनाने की विधि बाद में आयी क्योंकि उस टाइम इस विधि का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
बहरहाल, इडली की उत्पत्ति को लेकर जो भी भ्रम है, लेकिन आज ये व्यंजन पूरे भारतवर्ष में पसंद किया जा रहा है और इसे तरह तरह से बनाया भी जा रहा है और लोग इसके स्वाद का आनंद ले रहे हैं।
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