यश्वी सिंह
छठ सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि लाखों लोगों का गर्व है, परंपरा है और सबसे बढ़कर विश्वास है। विश्वास है प्रकृति पर, विश्वास हैं उस ईश्वर पर जो हमें साक्षात दिखते नहीं लेकिन वो हर वक़्त हमारी रक्षा करते हैं।
छठ महापर्व चार दिन तक चलता है और ये चार दिन हर व्रती और भक्त के लिए बहुत खास होता है। ये महापर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले महापर्व को 'चैती छठ' कहते हैं। वहीँ कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले त्यौहार को 'कार्तिकी छठ' कहा जाता है। महिलाएं अपने परिवार की ख़ुशहाली के लिए छठ का कठिन व्रत रखती हैं।
हिंदी महीने के हिसाब से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाई जाती है. शुक्ल पक्ष का मतलब होता है किसी भी हिंदी महीने के आख़िरी के 15 दिन। दरअसल हिंदी महीने के शुरुआती 15 दिनों को कृष्ण पक्ष और बाद के 15 दिन को शुक्ल पक्ष कहा जाता है. एक समय था जब छठ पर्व मोटा-मोटी बिहार, झारखंड, वेस्ट बंगाल और ईस्टर्न यूपी और नेपाल के तराई एरिया में मनाया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे ग्लोबलाइजेशन हुआ, मसलन 30- 35 सालों में, इन इलाकों के लोग जैसे-जैसे अमेरिका और यूरोप के अलग-अलग देशों में फैलते गए..तबसे ग्लोबल लेवल पर इस त्यौहार को धूम-धड़ाके से मनाया जा रहा है।
इस त्यौहार के लिए कहा जाता है कि ये मगही और भोजपुरी लोगों का सबसे बड़ा पर्व है. ये बिहार या फिर यूं कहिए कि भारत का एकलौता ऐसा त्यौहार है जो आज से नहीं बल्कि वैदिक समय से मनाया जा रहा है। इस त्यौहार में आर्य सभ्यता की एक झलक भी दिखाई देती है. ऋग्वेद में तो भगवान सूर्य की पूजा के बारे में विस्तार से बताया गया है. इस त्यौहार में सूर्य, जल और वायु की पूजा-अर्चना की जाती है, इसलिए इसको एनवायरमेंट फ्रेंडली त्यौहार भी कहा जाता है. ऐसा त्यौहार शायद ही दुनिया के किसी देश में मनाया जाता हो जो पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है।
तो चलिए अब इस त्यौहार के इतिहास के बारे में जानते हैं कि आखिर छठ पूजा मनाई क्यों जाती है?
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छठ पर्व के बारे में बहुत सारे Historical References मिलते हैं. छठ मैया को मिथिला में रनबे माय, भोजपुरी में रनबे माई और पश्चिम बंगाल में रनवे ठाकुर कहा जाता है. कहा जाता है कि बिहार स्थित मुंगेर सीता चरण मंदिर के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.ये मंदिर गंगा नदी के बीच में एक चट्टान पर बना हुआ है. यही इसकी खासियत है। कहा जाता है कि मुंगेर में सीता माँ ने छठ पूजा की थी. इसी के बाद से ही इस ऐतिहासिक त्यौहार की शुरुआत हुई. इसीलिए कहते हैं मुंगेर और पास के बेगूसराय में भी ये महापर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है।
इस महापर्व पर्व के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवताओं और राक्षसों की बीच युद्ध हुई तो इस युद्ध में देवता हार गए थे, तब देवमाता अदिति ने अपनी पुत्री रनवे यानी छठी मैया की पूजा शुरू की. ये पूजा सूर्य मंदिर में की गई थी. देव माँ अदिति ने छठी मैया से प्रार्थना की कि उन्हें ऐसा पुत्र मिले जो बहुत शक्तिशाली हो, जो देवताओं की ओर से राक्षसों का विनाश कर दे. छठी मैया देवमाता अदिति की भक्ति से खुश होकर उन्हें आशीर्वाद दी और देवमाता अदिति को बाद में एक पुत्र हुआ, जिन्हें भगवान आदित्य कहा गया. भगवान आदित्य को त्रिदेव रूप वाला अवतार माना जाता है, जिन्होंने देवताओं को जितवाया था।
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छठ पूजा मनाने के कई सारे References मिलते हैं। एक रेफरेंस रामायण से भी मिलता है. कहा जाता है कि रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम जब अयोध्या पहुंचे तो रामराज्य स्थापित करने की सोचे। इसके लिए उन्होंने कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि को व्रत रखा. सप्तमी को सूर्यास्त के समय सूर्य भगवान की पूजा की और अयोध्या में राम राज्य स्थापित करने के लिए आशीर्वाद मांगा. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा से खुश होकर छठी मैया ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
छठ पर्व को लेकर एक और कहानी प्रसिद्ध है . ऐसा दावा किया जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत महाभारत के समय में हुई थी. ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने उनकी पूजा शुरू की थी। सूर्य देव के कर्ण बड़े भक्त थे, वो प्रतिदिन पानी में घंटों खड़े होकर सूर्य देवता की पूजा करते थे. कहते हैं इसके बाद उन्हें सूर्य देव का आशीर्वाद मिला और बाद में वो अर्जुन से भी बड़े योद्धा माने गए. आप देखे तो आज भी छठ पूजा मनाने का जो ट्रेंड है, उसमें सूर्यदेव को अर्घ देने के लिए इसी तरह से लोग पानी में खड़े होते हैं।
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