प्रीति सिंह
जिस तरह संगीत -कला का कोई मजहब नहीं होता वैसे ही भोजन का कोई मजहब नहीं होता है। जैसे अच्छा संगीत बिना किसी की मदद के देश की सीमा पार कर दूसरे देश में पहुंच जाती है वैसे लजीज खाना भी किसी सीमा में बंधकर नहीं रहता। यदि खाने का जायका अच्छा हो तो उसे लोगों के बीच जगह बनाने में ज़्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। ऐसा ही एक डिश है जो भारत में दूर देश से आयी है लेकिन मौजूदा समय में देश का शायद की कोई क्षेत्र हो जहां ये पकाई ना जाती हो। इसकी खुशबू लोगों को इस कदर भाती है कि भूख ना होने के बाद भी दो-चार निवाला खा ही लेते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं लजीज बिरयानी की। वहीं बिरयानी जो किसी सीमा में बंधकर नहीं रहती। अपने जायके से ये सबको अपना दीवाना बना लेती है।
भारत में बिरयानी का अपना अलग ही आकर्षण है। हर राज्य की अपनी बिरयानी है, क्योंकि सबका इसे पकाने का अपना-अपना तरीका है। इसीलिए हर जगह की बिरयानी की अपनी खासियत और स्वाद है। बिरयानी का जायके से तो हम सभी परिचित हैं, तो चलिए आज बिरयानी का इतिहास जानते है कि आखिर ये लजीज बिरयानी आयी कहां से। वैसे हिंदुस्तान में पहली बार बेरयान का जिक्र नुस्खा-ए-शाहजहानी में मिलता है, जिसमे 17वीं सदी के मुगल बादशाह शाहजहां के दौर की रेसिपी हैं। ईरान में बेरयान जहां रोटी वाली डिश है तो वहीं भारत की बिरयानी चावल की। लेकिन इसका चलन कहां से शुरू हुआ इसको लेकर बहुत सारे किस्से है।
जिस बिरयानी को आप इतने चाव से खाते हैं उसके नामकरण के बारे में पहले जान लेते हैं। दरअसल बिरयानी का इतिहास पर्शिया से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि पर्शिया से बिरयानी निकली और देखते-देखते पूरी दुनिया में फ़ैल गई। बिरयानी पर्शियन शब्द बिरियन जिसका अर्थ होता है 'कुकिंग से पहले फ्राई' और 'बिरिंज' यानी चावल से निकला है। भारत में बिरयानी कैसे आई, इसे लेकर तर्क दिया जाता है कि बिरयानी को मुग़ल अपने साथ लेकर आये थे और जैस-जैसे समय बीता मुगल रसोइयों की बदौलत इसका जायका और बेहतर होता गया।
इतिहास के पन्नों में बिरयानी को लेकर तमाम कहानियां दर्ज है लेकिन सबसे ज़्यादा जो प्रचलित है वो ये है कि भारत में बिरयानी लाने का श्रेय बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल को जाता है। इससे जुड़ी एक कहावत मशहूर है। कहा जाता है कि एक बार बेगम मुमताज अपनी सेना की बैरक में गई तो उन्होंने देखा कि ज्यादातर मुग़ल सैनिक बहुत कमजोर हो गए हैं। सैनिकों की ये हालत देखकर बेगम मुमताज़ महल को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने तुरंत अपने शाही बावर्ची को बुलाया और उसे आदेश दिया कि सैनिकों को संतुलित आहार देने वाली कोई डिश परोसी जाए। उन्होंने इसके लिए बावर्ची से चावल और गोश्त यानी मीट का ऐसा मिश्रण बनाने को कहा जिससे सैनिकों को भरपूर पोषण मिले। इसके बाद ही चावल, गोश्त, कई तरह के मसालों और केसर को मिलाकर बिरयानी का जन्म हुआ।
बिरयानी के साथ एक और किवदंती जुड़ी है। कहा जाता है कि तुर्क- मंगोल आक्रांता तैमूर सन 1398 के आसपास इसे अपने साथ भारत लाया था। यहीं से बिरयानी पूरे भारत में फैली और लोगों ने अपने हिसाब से बिरयानी के साथ प्रयोग किया और उसका नाम दिया। ये तो हम सभी जानते हैं कि लखनऊ और हैदराबाद के निजामों के बीच ये डिश काफी लोकप्रिय थी। तभी तो लखनऊ या हैदराबाद आने वाला कोई भी शख्स वहां की बिरयानी जरूर टेस्ट करता है। इन दोनों शहरों की बिरयानी तो पूरे देश में लोकप्रिय है।
इसके अलावा भी कुछ बिरयानी है जो अपने जायके से सबका दिल जीत लेती है। इसमें मुगलई बिरयानी, मुरादाबादी बिरयानी, कोलकाता की आलू बिरयानी, सिंधी बिरयानी, बॉम्बे बिरयानी, डिंडीगुल बिरयानी और दूध की बिरयानी शामिल है। ये भी लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है। इसमें सबसे यूनीक होती है हैदराबाद की दूध बिरयानी। आमतौर पर बिरयानी अपने मसालों की वजह से जानी जाती है लेकिन दूध बिरयानी अपने हल्के फ्लेवर के लिए जानी जाती है। इसमे मलाईदार दूध के साथ रोस्टेड नट्स और खुशबूदार मसाले मिलाए जाते हैं। ये लाइट फ्लेवर वाली दूध की बिरयानी वाकई में सबसे यूनिक मानी जाती है। बिरयानी की सूची में बहुत सारे नाम शामिल हैं और सब खास हैं। सबकी अपनी खासियत और स्वाद है और शायद इसीलिए ये हमारे बीच अपने जगह बनाये हुए हैं।